• 29 Jun, 2025

आप जानते हैं तैतीस करोड़ या तैतीस कोटि देवी-देवता के नाम

आप जानते हैं तैतीस करोड़ या तैतीस कोटि देवी-देवता के नाम

सनातन धर्म में 33 कोटि देवताओं का उल्लेख मिलता है। कोटि शब्द का अर्थ है प्रकार या वर्ग। अतः, 33 कोटि देवता का अर्थ है 33 प्रकार के देवता। ये देवता सृष्टि के विभिन्न पहलुओं का प्रतिनिधित्व करते हैं।

33 कोटि देवताओं का नाम :-

आठ वसु: 1.आप, 2.ध्रुव, 3.सोम, 4.धर, 5.अनिल, 6.अनल, 7.प्रत्यूष और 8. प्रभाष।

ग्यारह रुद्र: 1.शम्भु, 2.पिनाकी, 3.गिरीश, 4.स्थाणु, 5.भर्ग, 6.भव, 7.सदाशिव, 8.शिव, 9.हर, 10.शर्व और 11.कपाली।

बारह आदित्य: - 1.अंशुमान, 2.अर्यमन, 3.इन्द्र, 4.त्वष्टा, 5.धातु, 6.पर्जन्य, 7.पूषा, 8.भग, 9.मित्र, 10.वरुण, 11.विवस्वान और 12.विष्णु।

2 अश्विनी कुमार : 1.नासत्य और 2.द्स्त्र। कुछ विद्वान इन्द्र और प्रजापति की जगह 2 अश्विनी कुमारों को रखते हैं। प्रजापति ही ब्रह्मा हैं।

कुछ शास्त्रों में इंद्र और प्रजापति के स्थान पर दो अश्विनी कुमारों को 33 कोटि देवताओं में शामिल किया गया है।

33 कोटि देवताओं का महत्व :-

33 कोटि देवताओं का महत्व सनातन धर्म में बहुत अधिक है। ये देवता सृष्टि के विभिन्न पहलुओं का प्रतिनिधित्व करते हैं और हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

आठ वसु हमारे भौतिक जीवन का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, चंद्रमा, सूर्य, और नक्षत्र के रूप में प्रकट होते हैं।
ग्यारह रुद्र हमारे आध्यात्मिक जीवन का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान, नाग, कूर्म, कृकल, देवदत्त, धनंजय और जीवात्मा के रूप में प्रकट होते हैं।

बारह आदित्य वर्ष के बारह महीनों का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे हमारे जीवन में होने वाले विभिन्न परिवर्तनों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

इंद्र विद्युत के रूप में प्रकट होते हैं। वे शक्ति और साहस के प्रतीक हैं।
प्रजापति यज्ञ के रूप में प्रकट होते हैं। वे सृष्टि के सृजनकर्ता और पालनहार हैं।

33 कोटि देवताओं का आध्यात्मिक महत्व :-

33 कोटि देवताओं का आध्यात्मिक महत्व भी बहुत अधिक है। वे हमारे जीवन में आध्यात्मिक विकास और जागरूकता को बढ़ावा देते हैं।

आठ वसु हमें भौतिक जीवन के सुखों का आनंद लेने के लिए प्रेरित करते हैं। लेकिन वे हमें यह भी याद दिलाते हैं कि भौतिक जीवन केवल एक अस्थायी यात्रा है।

ग्यारह रुद्र हमें आध्यात्मिक जीवन के महत्व को समझाते हैं। वे हमें बताते हैं कि आध्यात्मिक जीवन ही हमें वास्तविक सुख और शांति प्रदान कर सकता है।

बारह आदित्य हमें वर्ष के बारह महीनों के रूप में प्रकट होते हैं। वे हमें जीवन में होने वाले विभिन्न परिवर्तनों के लिए तैयार रहने के लिए प्रेरित करते हैं।

इंद्र हमें शक्ति और साहस प्रदान करते हैं। वे हमें जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रेरित करते हैं।

प्रजापति हमें सृष्टि के रहस्यों को समझने में मदद करते हैं। वे हमें बताते हैं कि हम सभी एक ही सत्ता से जुड़े हुए हैं।

33 कोटि देवता हमारे जीवन में मार्गदर्शक और प्रेरणा के स्रोत हैं। वे हमें एक बेहतर इंसान बनने में मदद करते हैं।

इसके अलावा ये भी हैं देवता:-

49 मरुतगण :  मरुतगण देवता नहीं हैं, लेकिन वे देवताओं के सैनिक हैं। वेदों में इन्हें रुद्र और वृश्नि का पुत्र कहा गया है तो पुराणों में कश्यप और दिति का पुत्र माना गया है।

मरुतों का एक संघ है जिसमें कुल 180 से अधिक मरुतगण सदस्य हैं, लेकिन उनमें 49 प्रमुख हैं। उनमें भी 7 सैन्य प्रमुख हैं।

मरुत देवों के सैनिक हैं और इन सभी के गणवेश समान हैं। वेदों में मरुतगण का स्थान अंतरिक्ष लिखा है। उनके घोड़े का नाम 'पृशित' बतलाया गया है तथा उन्हें इंद्र का सखा लिखा है।-(ऋ. 1.85.4)।

पुराणों में इन्हें वायुकोण का दिक्पाल माना गया है। अस्त्र-शस्त्र से लैस मरुतों के पास विमान भी होते थे। ये फूलों और अंतरिक्ष में निवास करते हैं।

7 मरुतों के नाम निम्न हैं- 1.आवह, 2.प्रवह, 3.संवह, 4.उद्वह, 5.विवह, 6.परिवह और 7.परावह।

यह वायु के नाम भी है। इनके 7-7 गण निम्न जगह विचरण करते हैं- ब्रह्मलोक, इन्द्रलोक, अंतरिक्ष, भूलोक की पूर्व दिशा, भूलोक की पश्चिम दिशा, भूलोक की उत्तर दिशा और भूलोक की दक्षिण दिशा। इस तरह से कुल 49 मरुत हो जाते हैं, जो देव रूप में देवों के लिए विचरण करते हैं।

12 साध्यदेव : अनुमन्ता, प्राण, नर, वीर्य्य, यान, चित्ति, हय, नय, हंस, नारायण, प्रभव और विभु ये 12 साध्य देव हैं, जो दक्षपुत्री और धर्म की पत्नी साध्या से उत्पन्न हुए हैं।

इनके नाम कहीं कहीं इस तरह भी मिलते हैं:- मनस, अनुमन्ता, विष्णु, मनु, नारायण, तापस, निधि, निमि, हंस, धर्म, विभु और प्रभु।

64 अभास्वर : तमोलोक में 3 देवनिकाय हैं- अभास्वर, महाभास्वर और सत्यमहाभास्वर। ये देव भूत, इंद्रिय और अंत:करण को वश में रखने वाले होते हैं।

12 यामदेव : यदु ययाति देव तथा ऋतु, प्रजापति आदि यामदेव कहलाते हैं।

10 विश्वदेव : पुराणों में दस विश्‍वदेवों को उल्लेख मिलता है जिनका अंतरिक्ष में एक अलग ही लोक है।

अन्य देव - ब्रह्मा (प्रजापति), विष्णु (नारायण), शिव (रुद्र), गणाधिपति गणेश, कार्तिकेय, धर्मराज, चित्रगुप्त, अर्यमा, हनुमान, भैरव, वन, अग्निदेव, कामदेव, चंद्र, यम, हिरण्यगर्भ, शनि, सोम, ऋभुः, ऋत, द्यौः, सूर्य, बृहस्पति, वाक, काल, अन्न, वनस्पति, पर्वत, धेनु, इन्द्राग्नि, सनकादि, गरूड़, अनंत (शेष), वासुकी, तक्षक, कार्कोटक, पिंगला, जय, विजय, मातरिश्वन्, त्रिप्रआप्त्य, अज एकपाद, आप, अहितर्बुध्न्य, अपांनपात, त्रिप, वामदेव, कुबेर, मातृक, मित्रावरुण, ईशान, चंद्रदेव, बुध, शनि आदि।

अन्य देवी - दुर्गा, सती-पार्वती, लक्ष्मी, सरस्वती, भैरवी, यमी, पृथ्वी, पूषा, आपः सविता, उषा, औषधि, अरण्य, ऋतु त्वष्टा, सावित्री, गायत्री, श्री, भूदेवी, श्रद्धा, शचि, दिति, अदिति, दस महाविद्या, आदि।