जीएसटी की नई दरें किसानों के लिए वरदान साबित होंगी : शिवराज
केंद्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान की प्रेस वार्ता
हाथरस में भोले बाबा के सत्संग में मची भगदड़ से 121 लोगों की मौत के बाद कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं. पहले भी देश में धार्मिक आयोजनों या धार्मिक स्थलों पर ऐसे हादसे होते रहे हैं. जिसके बाद जांच और कार्रवाई तो होती है पर कोई जिम्मेदार सबक लेता नहीं दिखाई देता है. आइए जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर धार्मिक आयोजन या स्थल पर ही ऐसे हादसे क्यों होते हैं? क्या हैं इनकी वजह?
लखनऊ। यूपी के हाथरस स्थित सिकंदराराऊ थाना क्षेत्र के फुलरई में आयोजित भोले बाबा के सत्संग में मची भगदड़ से 121 लोगों की मौत के बाद कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं. मृतकों में ज्यादातर महिलाएं और बच्चे हैं. हालांकि, हाथरस में ही पहली बार ऐसा हादसा हुआ है, ऐसा नहीं है. पहले भी भीड़भाड़ वाले स्थलों खासकर धार्मिक आयोजनों या धार्मिक स्थलों पर ऐसे हादसे होते रहे हैं. जिसके बाद जांच और कार्रवाई तो होती है पर कोई जिम्मेदार सबक लेता नहीं दिखाई देता है.
भारी भीड़: आस्था और आराध्य के दर्शन के लिए बेकाबू हो जाते हैं लोग
आमतौर पर धार्मिक आयोजनों या धर्मस्थलों पर भारी भीड़ उमड़ती है. गहरी आस्था के चलते लोग अपने आराध्य के दर्शन करने या उनके बारे में सत्संग-प्रवचन सुनने के लिए बड़ी संख्या में पहुंचते हैं. एक जनवरी 2022 को माता वैष्णो देवी के दर्शन के लिए इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालु उमड़ पड़े थे, जिससे भगदड़ मच गई थी. इस हादसे में 12 लोगों की जान चली गई थी, जबकि एक दर्जन घायल हुए थे.
ऐसे ही महाराष्ट्र के सतारा में साल 2005 की 25 जनवरी को मंधारदेवी मंदिर में सालाना तीर्थयात्रा के दौरान मची भगदड़ में 340 से अधिक श्रद्धालुओं की कुचलने से मौत हो गई थी. तीन अक्तूबर 2014 को पटना के गांधी मैदान में दशहरा समारोह के समाप्त होने के बाद भगड़ में 32 जानें गई थीं. चार मार्च 2010 को यूपी के प्रतापगढ़ जिले में स्थित मनगढ़ में कृपालु महाराज के राम जानकी मंदिर में मची भगदड़ में 63 लोगों की जान चली गई थी.
पटना में गंगा के तट पर 19 नवंबर 2012 को छठ पूजा के दौरान अचानक अस्थायी पुल ढहने से भगदड़ मच गई थी. इसमें 20 लोगों की मौत हो गई थी. इससे पहले आठ नवंबर 2011 को हरिद्वार में गंगा किनारे हरकी पैड़ी पर मची भगदड़ में कम से कम 20 लोगों की जान चली गई थी.
भीड़ और पिछले मामलों से सबक न लेना
भारी भीड़ के कारण भगदड़ मचने के और भी कई उदाहरण हैं. इसके लिए कहीं न कहीं इंतजामों की कमी भी जिम्मेदार होती है. वास्तव में लोग अपनी-अपनी आस्था के कारण धार्मिक स्थलों या आयोजन में शामिल होना चाहते हैं और इसके लिए वे किसी बात की परवाह नहीं करते. ऐसे में जरा सी भी ऊंच-नीच भगदड़ का कारण बन जाती है. भारी भीड़ के बीच छोटी सी अफवाह भी बड़ा रूप ले लेती है. साल 2011 की 14 जनवरी को केरल के इडुक्की जिले में एक जीप सबरीमाला मंदिर में दर्शन कर रहे श्रद्धालुओं से टकरा गई थी. इसके बाद ऐसी अफवाह फैली, जिससे भगदड़ मच गई और इसमें 104 श्रद्धालुओं की जान चली गई थी.
इसी तरह से बताया जा रहा है कि हाथरस में सत्संग स्थल पर सवा लाख लोग मौजूद थे. इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के पहुंचने का अंदाजा न तो आयोजकों को था और न ही जिला प्रशासन को. इसलिए इस संख्या के हिसाब से मौके पर व्यवस्था ही नहीं की गई थी, जबकि सत्संग स्थल के अंदर की व्यवस्था आयोजकों को संभालनी थी और बाहर कानून-व्यवस्था पर प्रशासन और पुलिस को नजर रखनी थी, क्योंकि इस आयोजन के लिए जिला प्रशासन से बाकायदा अनुमति ली गई थी. इसके बावजूद सत्संग स्थल पर न तो श्रद्धालुओं के प्रवेश और निकासी के लिए अलग-अलग द्वार थे और न ही वीआईपी यानी भोले बाबा को भीड़ से सुरक्षित अलग रास्ते से निकालने के इंतजाम किए गए थे. ऐसे में बाबा जब सामने दिखे तो भीड़ उनके पैरे छूने के लिए आगे बढ़ने लगी और बेकाबू हो गई.
चश्मदीदों के हवाले से यह भी बताया जा रहा है कि सत्संग स्थल पर जमीन ऊबड़-खाबड़ थी. इसे समतल करने तक की जहमत नहीं उठाई गई थी. ऐसे में जब भीड़ निकलने लगी तो पैर ऊपर-नीचे होने से लोग गिरने लगे. इससे भगदड़ की स्थिति और भी गंभीर हो गई.
कम जगह में ज्यादा लोग
देश के कई धार्मिक स्थलों के परिसर तो काफी बड़े हैं पर मुख्य दर्शन या पूजा स्थल काफी छोटे हैं. इसमें एक साथ भीड़ का रेला आता है तो धक्के के कारण लोग एक-दूसरे के ऊपर चढ़ने लगते हैं. इस दौरान लोग खुद के शरीर को ही नियंत्रित नहीं कर पाते हैं. ऐसे में अगर एक व्यक्ति भी भीड़ में गिर जाता है तो लोग चाहते हुए भी खुद को रोक नहीं पाते हैं और उस पर चढ़ जाते हैं.
नतीजा यह होता है कि भीड़ में किसी के गिरने, बेहोश होने या मौत की अफवाह फैलती है और बचने के लिए लोग भागने लगते हैं. भीड़ में शामिल लोग, खासकर बुजुर्ग, बच्चे और महिलाएं इस भगदड़ का सबसे ज्यादा शिकार होते हैं. इसके लिए स्थानीय प्रशासन भी कहीं न कहीं जिम्मेदार होता है, जो आस्था के आगे हाथ खड़े कर देता है. छोटे स्थल पर अधिक लोगों की भीड़ बढ़ने पर भी वह लोगों को रोकता नहीं है.
हाथरस के मामले में भी ऐसा ही देखने को मिल रहा है. बताया जा रहा है कि हाथरस में अनुमति और आकलन से कहीं ज्यादा भीड़ पहुंच गई थी. इसके बावजूद प्रशासन तमाशबीन बना रहा और न तो आयोजन निरस्त किया और न ही लोगों को रोकने की कोशिश की.
आयोजकों की मनमानी और प्रशासन की अनदेखी
धार्मिक आयोजन हों या अन्य कोई आयोजन, जिसमें ऐसी हस्तियां पहुंचती हैं, जिनके कारण भारी भीड़ इकट्ठा हो सकती है तो आयोजक खुद को वीआईपी से भी बड़ा मानने लगते हैं. इसके कारण वे लोगों के साथ मनमानी करते हैं. उन्हें रोकते-टोकते हैं. इसके कारण लोगों में गुस्सा पनपने लगता है और यह किसी न किसी रूप में फूटता है. कई बार पत्थरबाजी और तोड़फोड़ होती है तो कई बार वीआईपी के लिए बनाए गए मंच आदि पर भीड़ चढ़ जाती है.
हाथरस की घटना में भी इस तरह का नजारा सामने आने की बात प्रत्यक्षदर्शी कर रहे हैं. बताया जा रहा है कि बाबा के काफिले को निकालने के लिए वहां मौजूद श्रद्धालुओं को आयोजन की व्यवस्था संभालने लगे लोगों ने रोक दिया था, जबकि वे किसी भी कीमत पर बाबा के पास पहुंचना चाहते थे. आमतौर पर प्रशासन भी ऐसे मामलों की अनदेखी करता है.
मौसम: गर्मी-उमस से बिगड़ जाते हैं हालात
मौसम का भी ऐसे आयोजनों के दौरान भगदड़ का अहम योगदान होता है. सर्दी, गर्मी हो या फिर बारिश का मौसम भारी भीड़ के कारण आयोजन स्थल पर उमस होती ही है. भीषण सर्दी में भी भीड़ के बीच लोगों के पसीना निकलने लगता है. इससे बचने के लिए वे बाहर निकलने की कोशिश करते हैं. अगर गर्मी का मौसम हो तो उमस उन्हें बेचैन करने लगती है. आयोजन अगर बंद स्थान पर हो रहा हो और ठंडी हवा की व्यवस्था न हो तो हर कोई परेशान हो जाता है. खुले में हो रहे आयोजन के दौरान जरा सी बारिश होने या बूंदें पड़ने पर ही लोग भागने लगते हैं.
हाथरस के चश्मदीदों के हवाले से बताया जा रहा है कि सत्संग स्थल भीषण गर्मी थी. उमस से लोग व्याकुल हो रहे थे और इससे भक्तों को बचाने के लिए उचित प्रबंध नहीं किए गए थे. ऐसे में आयोजन खत्म होने के बाद लोग जल्द से जल्द भीड़ से निकलकर हवादार स्थल या अपने घर पहुंचना चाहते थे. इसी जल्दबाजी में स्थिति और भी विकराल होती चली गई.
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