• 28 Jun, 2025

चमत्कार, तो कोई बिग बी से सीखे

चमत्कार, तो कोई बिग बी से सीखे

यह शायद भारतीय सिनेमा के इतिहास में पहली ही बार हो रहा है कि कोई अस्सी साल का बुजुर्ग अभिनेता इतने बड़े बजट की फ़िल्म को अपने कंधे पर उठा कर पार लगा रहा है। यह केवल और केवल अमिताभ कर सकते हैं। यह बताते हुए कि यह किसी समीक्षक का नहीं, अमिताभ के एक प्रशंसक का आलेख है, मैं कह सकता हूँ कि कल्कि प्रभास से अधिक अमिताभ की फिल्म है।


मुंबई। उन्होंने भूत का किरदार निभाया, जिन्न बने, बच्चा बने, गॉड बने... खास बात ये है कि 65 वर्ष की उम्र की दहलीज पार करने के बाद उन्होंने इस तरह के चुनौतीपूर्ण किरदार निभाए। सब कुछ हटा कर अगर सिर्फ अभिनय की बात करें अमिताभ बच्चन ने 20वीं सदी में बॉक्स ऑफिस पर जितने चमत्कार किए थे, उसका कई गुना करामात उन्होंने 21वीं सदी में कर दिखाया है।

हाल ही में रिलीज हुई #Kalki2898AD की ही बात करें तो इतने बड़े-बड़े अभिनेताओं के होने के बावजूद ये अमिताभ बच्चन की फिल्म बन गई है और यही इस बूढ़े शेर की खासियत है। खासियत है इनकी कि उम्र के साथ इनकी आवाज़ और अधिक दमदार होती चली जा रही है और अभिनय की विभिन्न विधाओं का एक ही दृश्य में प्रदर्शन कर देना इनकी सबसे बड़ी क्षमता बनती जा रही है। अश्वत्थामा के किरदार में #AmitabhBachchan की कद-काठी उनका भरपूर साथ देती है, शेर की दहाड़ जैसी उनकी आवाज़ इस किरदार में जान डालती है और उनकी रहस्यमयी आँखें सचमुच ये एहसास दिलाती हैं कि ये किरदार 5000 वर्षों का इतिहास अपने भीतर समेटे हुए है।

असल में अमिताभ बच्चन ने छा जाने की ये विधा अपनी कमबैक फिल्म 'मोहब्बतें' से ही सीख ली थीं, जब उन्होंने 10 अभिनेता-अभिनेत्रियों के बीच अपने किरदार में ऐसी जान डाली कि इस फिल्म को उनके 'परंपरा, प्रतिष्ठा, अनुशासन' के लिए याद किया जाने लगा। शाहरुख़-सलमान की फिल्मों में एक ज़िंदादिल पिता का किरदार अदा करना हो या फिर 'सरकार' सीरीज में 'गॉडफादर' सदृश किरदार हो, अमिताभ बच्चन ने कभी इसकी परवाह नहीं की कि फिल्म में उनका कितनी देर का किरदार हैं या फिर कौन से और अभिनेता-अभिनेत्री हैं।

आप 'पीकू' को भी इसी श्रेणी में देख सकते हैं, जितने बंगाली अमिताभ बच्चन इस फिल्म में लगे हैं उतने बंगाली शायद बंगाल का कोई अभिनेता भी नहीं लगता। आप उन्हें 15-16 साल के बच्चों के साथ फिल्म में डाल दीजिए या फिर 'ऊँचाइयाँ' में बुजुर्गों के साथ, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। 'कल्कि' को और अच्छा बनाया जा सकता था, जिसमें कोई शक नहीं है, लेकिन, इस फिल्म में अगर बिग बी की जगह कोई और अभिनेता होता तो शायद आज प्रभाष गालियाँ सुन रहे होते। अमिताभ बच्चन ने इस फिल्म को ढोया है, उन्हें अधिक स्क्रीन स्पेस देकर निर्देशक ने भी चतुराई बरती है।

भारत के निर्माता-निर्देशकों को मैं यही कहूँगा कि अगर आपके पास कोई ऐसा किरदार है जो आपको अत्यधिक चुनौतीपूर्ण लग रहा हो या फिर आप संशय में हों कि किस अभिनेता को इसे दिया जाए, बेधड़क Amitabh Bachchan को एप्रोच कीजिए। इस व्यक्ति के पास जो भी समय बचा है, उसमें ही ये भारतीय सिनेमा को अपना सर्वश्रेष्ठ देने वाला है। मुझे अभी भी लगता है कि 81 वर्ष की उम्र के बाद अब भी उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन बचा हुआ है। अगर #Kalki के दूसरे भाग में भी वो होते हैं और उम्र व स्वास्थ्य उनका साथ देता है तो वो भारत की सबसे अधिक कमाई करने वाली फिल्म होगी।

इस उम्र तक भला कौन ही अभिनय करता है, आप ही सोचिए न। 75 तक आते-आते धर्मेंद्र भी ठंडे पड़ गए थे, मिथुन चक्रवर्ती ने 74 की उम्र में बिस्तर पकड़ लिया है, विनोद खन्ना 70 की आयु में कैंसर से चल बसे, गोविंदा का तो 45 साल के होते-होते करियर ही खत्म हो गया, राजेश खन्ना ने 60 पार होते ही बी-ग्रेड फिल्मों में काम करना शुरू कर दिया था, शशि कपूर के बुढ़ापे का कोई रोल ही किसी को याद नहीं। हाँ, शम्मी कपूर ने ज़रूर बुजुर्ग होने के बाद कुछ अच्छे किरदार निभाए लेकिन सब में उन्हें गुस्सैल पिता ही बनाया गया। मुन्नाभाई सीरीज छोड़ दें तो सुनील दत्त भी बुढ़ापे के दिनों में सक्रिय नहीं रहे। जितेंद्र जैसे अभिनेता अंत में बड़े भाई का किरदार निभाते-निभाते थक कर निकल लिए। कुल मिला कर देखें तो अपने समय के अभिनेताओं में सबसे अधिक Versatile 
    बहुत से अभिनेता ऐसे हुए जिन्हें उनकी किसी एक बड़ी सफलता ने मार डाला। जैसे मुकेश खन्ना लम्बे समय तक भीष्म पितामह की छवि से बाहर नहीं निकल सके, जैसे अरुण गोविल प्रभु श्रीराम की छवि से कभी बाहर नहीं आ सके, वैसे ही प्रभास भी जैसे बाहुबली पर रुक गए हैं। 
    पर अमिताभ तो अमिताभ हैं। उन्हें आप दो मिनट का रोल दीजिये या दो घण्टे का, वे महफ़िल लूट ले जाएंगे। हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्री में उनका विकल्प नहीं आया अबतक! आगे भी कोई शायद ही आये। कल्कि में या तो नाग अश्विन की कल्पना है, या अमिताभ का अभिनय। शेष कुछ नहीं...
     उनके दृश्य भले तकनीकी सहायता लेकर भव्य बनाये गए हों पर वे योद्धा की तरह लगते तो हैं। उनको देख कर आंखें तृप्त हो रही हैं, उनकी भारी आवाज कानों को आनन्द दे रही है। परदे पर उनका होना केवल उस कहानी की उम्मीद नहीं है, बल्कि वे दर्शक की भी उम्मीद हैं। जैसे उनके बाद कुछ और न हो...
     अपनी दूसरी पारी में बच्चन ब्लैक, देव, पा, पीकू, पिंक, जैसी फिल्मों के जरिये जो मील के पत्थर लगाते चल रहे हैं, कल्कि उसी शृंखला की फ़िल्म है। यह फ़िल्म बच्चन के लिए ही याद रह जायेगी।
    पिछले दिनों इसी फिल्म के प्रमोशन की एक वीडियो आई थी, जिसमें मंच पर खड़े अमिताभ सीढ़ियों से आ रही गर्भवती दीपिका को सहारा देने के लिए लगभग दौड़ते हुए आगे बढ़ते हैं और उनका हाथ पकड़ कर मंच पर ले जाते है। एक बयासी वर्ष के व्यक्ति में इतना आत्मविश्वास, इतनी ऊर्जा, इतना बल बहुत ही दुर्लभ है। इस फ़िल्म में भी वह बुजुर्ग यूँ ही दौड़ दौड़ कर सबको सहारा दे रहा है। अभिनेताओं को, निर्देशक को, कहानी को, सङ्गीत को... इस उम्र में उनका गीत गाना अद्भुत ही है। 
    अपनी पुस्तक मधुशाला के पचासवें संस्करण के समय डॉ बच्चन ने लिखा था- "अर्धशती की होकर के भी षोडष वर्षी मधुशाला!" अमिताभ 82 वर्ष में भी षोडश वर्षी ही हैं।