• 28 Jun, 2025

सिंधिया से मध्य प्रदेश में क्या बीजेपी को फ़ायदा हुआ ?

सिंधिया से मध्य प्रदेश में क्या बीजेपी को फ़ायदा हुआ ?

मध्य प्रदेश में सत्ता पाने की कांग्रेस की ख़्वाहिश एक बार फिर अधूरी रह गई.,मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 163 और कांग्रेस को 66 सीटें मिलीं. मगर ग्वालियर-चंबल संभाग की 34 सीटों में से 16 सीटें जीतने में कांग्रेस इस बार सफल रही है.कांग्रेस को 2018 के विधानसभा चुनाव में इन 34 में से 26 सीटों पर जीत मिली थी. यानी इस बार कांग्रेस को ग्वालियर-चंबल संभाग में 10 सीटों का नुक़सान हुआ है.

 

ज्योतिरादित्य सिंधिया की मदद से तब मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान सत्ता में लौटे थे और सिंधिया को केंद्र में सिविल एविएशन मंत्रालय मिला था.माना जाता है कि 2018 में इस संभाग में कांग्रेस की जीत की एक वजह सिंधिया भी थे.सिंधिया जब कांग्रेस में थे, तब भी इस क्षेत्र में कांग्रेस की सीटें 2018 के नतीजों से कम रह चुकी हैं.2013 के विधानसभा चुनाव में इस संभाग में कांग्रेस को 12 सीट पर जीत मिली थी.2008 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को इस संभाग में 13 सीटें मिली थीं.वहीं बीजेपी को 2013 में चंबल ग्वालियर संभाग की 20 सीटें मिली थीं. 2008 में बीजेपी इस क्षेत्र में 16 सीटें जीत सकी थी.बीजेपी को ये सीटें तब मिली थीं, जब इस संभाग का अहम चेहरा माने जाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस में थे.अब जब सिंधिया बीजेपी में हैं, तब पार्टी इस संभाग में 18 सीटें जीत सकी है.मध्य प्रदेश में बीजेपी को 48.55, कांग्रेस को 40.40 और बसपा को 3.40 फ़ीसदी वोट मिले.इन 34 सीटों में से 20 सीटों पर बसपा तीसरे नंबर पर रही है.
इस संभाग में बसपा की भूमिका पर 'सिंधिया और 1857' किताब लिख चुके वरिष्ठ पत्रकार डॉ राकेश पाठक ने कहा, ''इस क्षेत्र में बसपा का प्रभाव पहले भी रहा है. इस बार बसपा उतनी सक्रिय नहीं थीं. मायावती ख़ुद भी कांग्रेस और इंडिया गठबंधन से दूर रहीं. बसपा, सपा और कुछ ऐसे छोटे दल हैं, जिनसे कांग्रेस को नुकसान हुआ ही होगा.''
''हालांकि प्रतिशत में ये कम ही है. पर बसपा की वजह से कांग्रेस को नुकसान हुआ है. ये दोनों दल परंपरागत रूप से दलितों को अपना वोटर मानती रही हैं. 2018 में काफ़ी समय बाद कांग्रेस के पास ये वोट लौटा था. वो शायद इस बार बीजेपी की ओर गया.''
हालांकि बीजेपी को ग्वालियर चंबल संभाग में सिंधिया के पार्टी में आने से जो उम्मीदें थीं, वो नतीजों में पूरी नहीं हुईं.ग्वालियर चंबल में सिंधिया परिवार की भूमिकाग्वालियर-चंबल सिंधिया परिवार के प्रभाव का क्षेत्र हमेशा से रहा है. 1857 की क्रांति में सिंधिया परिवार की भूमिका पर सवाल भी उठते रहे हैं.
आज़ादी के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया के दादा जीवाजी राव सिंधिया को मध्य भारत राज्य के पहले राजप्रमुख बनाए गए थे. सिंधिया परिवार के नेहरू-गांधी परिवार से भी अच्छे रिश्ते रहे.
सिंधिया परिवार का प्रभाव आज भी है पर ये वैसा नहीं है जैसा पहले हुआ करता था. फिर चाहे माधव राव सिंधिया के दौर की बात की जाए या फिर ख़ुद ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस में रहते हुए जो प्रभाव था. जब वो कांग्रेस में थे तो इस संभाग की हर टिकट तय करते थे. अब बीजेपी में हैं तो अपने ही लोगों को टिकट नहीं दिला पाए हैं. ज्योतिरादित्य का प्रभाव धीरे-धीरे कम हो रहा है.''
वो कहते हैं, ''दतिया में तीन में से दो सीट कांग्रेस जीती है. भिंड में दो सीट कांग्रेस जीती है. हां इसे सफलता कहा जा सकता है कि 2018 में जिस कांग्रेस के पास 26 सीटें थीं, वो घट गई हैं. ये बीजेपी की बढ़त है. इसे सिंधिया का योगदान मान सकते हैं और नरेंद्र सिंह तोमर का योगदान मान सकते हैं. एक केंद्रीय मंत्री का चुनाव लड़ना आस-पास की सीटों पर प्रभाव डालता है. नरेंद्र सिंह का प्रभाव मुरैना ज़िले में रहा होगा. पर जितनी सीटें बीजेपी को मिली हैं, उसे बहुत अच्छी बढ़त नहीं माना जा सकता है.''
ग्वालियर चंबल में कितने ज़िले, कितनी सीटें?
ग्वालियर चंबल संभाग में कुल 34 विधानसभा सीटें हैं. ये 34 सीटें 8 ज़िलों में फैली हुई हैं.

ज़िला ग्वालियर: भीतरवार, डबरा, ग्वालियर ग्रामीण, ग्वालियर दक्षिण, ग्वालियर पूर्व, ग्वालियर

ज़िला गुना: चाचौड़ा, गुना, राघोगढ़, बमोरी

ज़िला शिवपुरी: करैरा, शिवपुरी, पोहरी, पिछोर, कोलारस

ज़िला दतिया: भांडेर, दतिया, सेवढ़ा

ज़िला अशोकनगर: चंदेरी, मुंगावली, अशोकनगर

ज़िला मुरैना: सुमावली, जौरा, सबलगढ़, मुरैना, दिमनी, अंबाह

ज़िला भिंड: अटेर, लहार, भिंड, मेहगांव, गोहद

ज़िला श्योपुर: श्योपुर, विजयपुर

ग्वालियर चंबल में खेल किसने बिगाड़ा?
2018 चुनाव में कांग्रेस को 114 सीटें और बीजेपी को 109 सीटें मिली थीं.

इन चुनावों के बारे में डॉ राकेश पाठक ने कहा, ''बीजेपी को 2008 और 2013 के नतीजों को ध्यान में रखते हुए जो उम्मीद थी, वैसा प्रदर्शन बीजेपी का नहीं रहा है. बीजेपी को चुनाव में फ़ायदा तो हुआ है पर अकेले ज्योतिरादित्य सिंधिया की वजह से नहीं हुआ है. 2018 में कांग्रेस को जो जीत मिली थी, उसमें दिग्विजय सिंह, कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया का योगदान था.''

चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस की ओर से ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी का हाथ थामने को मुद्दा बनाया गया था.

इस बारे में डॉ राकेश पाठक बोले, ''ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में जाने के बाद दो बड़ी चीजें हुईं. एक तो उपचुनाव में ग्वालियर की दोनों सीटें बीजेपी हार गई. बीजेपी सालों बाद मेयर का चुनाव हार गई. सिंधिया के रहते कांग्रेस ये चुनाव नहीं जीत सकी थी. जब कांग्रेस सिंधियामुक्त हुई तो ग्वालियर में महापौर का चुनाव जीत लिया. मुझे लगता है कि ग्वालियर चंबल संभाग ने सिंधिया के दल-बदल को उस तरह स्वीकार नहीं किया, जैसा बीजेपी और उनको लग रहा था.''

2023 विधानसभा चुनावी नतीजों ने इस संभाग में एक बड़ा झटका सिंधिया परिवार को भी दिया है.

ग्वालियर ईस्ट सीट पर सिंधिया घराने की मामी माया सिंह भी 15 हज़ार वोटों से हारीं. इस सीट पर कांग्रेस के डॉ सतीश सिकरवार एक लाख से ज्यादा वोट हासिल करके विधायक चुने गए हैं.

इस संभाग की 34 सीटों में से कई सीटें ऐसी रही हैं, जिसमें मायावती की बसपा के उम्मीदवारों ने अच्छे ख़ासे वोट जुटाए हैं.

कई सीटों पर बसपा उम्मीदवार दूसरे या तीसरे नंबर पर रहे हैं.

दिमनी सीट पर बीजेपी के नरेंद्र सिंह तोमर ने क़रीब 79 हज़ार वोट हासिल करके जीत दर्ज की है. इस सीट पर बसपा के बलवीर सिंह दंडोतिया को 54 हज़ार वोट मिले हैं और वो दूसरे नंबर पर हैं.

वहीं कांग्रेस के रविंद्र सिंह तोमर 24 हज़ार वोट मिले हैं और वो तीसरे नंबर पर रहे. कहा जा रहा है कि अगर बसपा को मिला वोट कांग्रेस के खाते में गया होता तो वो इस जीत पर दर्ज कर सकती थी.

ग्वालियर ग्रामीण सीट पर कांग्रेस के साहब सिंह गुर्जर 79 हज़ार वोट हासिल करके जीते. इस सीट पर बीजेपी के भरत सिंह कुशवाहा को 76 हज़ार वोट मिले. वहीं बसपा के सुरेश बघेल को 26 हज़ार वोट मिले और वो तीसरे नंबर पर रहे.

ग्वालियर दक्षिण सीट पर 82 हज़ार वोट हासिल करके नारायण सिंह कुशवाहा जीते. कांग्रेस के प्रवीण पाठक इस सीट पर 2536 वोट से हारे. बसपा, आम आदमी पार्टी समेत दूसरे उम्मीदवारों ने इस सीट पर कांग्रेस का खेल बिगाड़ा.