यह गेरुआ लंबोदर गणेश प्रतिमा अपनी ऊँचाई और भव्यता से दर्शकों को आकर्षित कर रही है। प्रतिमा की सूक्ष्म नक्काशी, मुकुट पर जड़ी मणियाँ, आभूषणों की सज्जा और अलंकरण की सजीवता इसे अनुपम बनाती है। इस मूर्ति को विशेष तकनीक से पकाया गया है जिससे यह अधिक सुदृढ़ और टिकाऊ बनी रहे।
भोपाल, / इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय, भोपाल अपनी विशिष्ट कलात्मक प्रस्तुतियों और सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण के लिए निरंतर जाना जाता है। इसी कड़ी में संग्रहालय परिसर में एक अद्वितीय और अनुपम कृति का सृजन किया गया है। पुदुक्कोट्टई (तमिलनाडु) के प्रसिद्ध टेराकोटा शिल्पियों ने मिलकर भगवान गणेश की 14 फीट ऊँची भव्य प्रतिमा का निर्माण किया है। यह प्रतिमा अपने स्वरूप और आकार में देश की पहली और इकलौती मानी जा रही है।
मानव संग्रहालय के “मिथक वीथी”परिसर में अय्यनार देवालय के अंतर्गत परंपरागत विधि-विधान से तमिलनाडु के पुदुक्कोट्टई क्षेत्र में पूजे जाने वाले प्रकृति देवता का मंदिर (सोलेई अंडबार आलयम) की प्रतिष्ठा संपन्न की गई। इसी अनुष्ठान के अंतर्गत 14 फीट ऊँचे भगवान श्री गणेश जी की प्रतिमा को प्रतिष्ठित किया गया। इस प्रदर्शनी को बनाने के लिए कलाकार श्री याणपण फिटम कुम्भरेशन सहित 10 कलाकार लगभग दो माह तक लगातार कार्यरत रहे। मूर्ति निर्माण के बाद ‘कण तिराप्पु’ अर्थात् देव प्रतिमा की आँखें खोलने की पारंपरिक परंपरा भी पूर्ण की गई, जिसने इस आयोजन को और भी पवित्र एवं सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बना दिया।
यह गेरुआ लंबोदर गणेश प्रतिमा अपनी ऊँचाई और भव्यता से दर्शकों को आकर्षित कर रही है। प्रतिमा की सूक्ष्म नक्काशी, मुकुट पर जड़ी मणियाँ, आभूषणों की सज्जा और अलंकरण की सजीवता इसे अनुपम बनाती है। इस मूर्ति को विशेष तकनीक से पकाया गया है जिससे यह अधिक सुदृढ़ और टिकाऊ बनी रहे।
संग्रहालय की असिस्टेंट क्यूरेटर और मिथक वीथि गैलरी प्रभारी डा.पी. अनुराधा ने बताया कि तमिलनाडु के शिल्पकारों ने अब तक हाथी, घोड़े, नाग, गणेश एवं देवी-देवताओं की सैकड़ों प्रतिमाएँ बनाई हैं, किंतु गणेशजी का इतना विशाल और अद्वितीय स्वरूप पहली बार तैयार किया गया है।
संग्रहालय के निदेशक प्रो. अमिताभ पांडे ने कहा कि यह मूर्ति तमिलनाडु की प्राचीन टेराकोटा कला का अनुपम उदाहरण है और भारतीय सांस्कृतिक विविधता को अभिव्यक्त करती है। उन्होंने नागरिकों और कला-प्रेमियों से आग्रह किया कि वे संग्रहालय आकर इस अद्वितीय प्रतिमा का अवलोकन अवश्य करें।
जनसंपर्क अधिकारी हेमंत बहादुर सिंह परिहार ने बताया कि अय्यनार देवालय के में प्रदर्शित की गई यह प्रतिमा दर्शकों और शोधार्थियों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र बनी हुई है । संग्रहालय की यह पहल भारतीय कला ,परंपरा के संरक्षण और संवर्धन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय द्वारा प्रस्तुत यह अनुपम कृति न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि भारतीय शिल्पकला की समृद्ध परंपरा को सजीव बनाए रखने का प्रयास भी है।