• 11 Sep, 2025

प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने की दिशा में आईआईटी भिलाई की क्रांतिकारी खोज

प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने की दिशा में आईआईटी भिलाई की क्रांतिकारी खोज

रायपुर / भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) भिलाई के रसायन विभाग की शोध टीम – प्रियंक सिन्हा, सुदीप्त
पाल, स्वरूप माईति, और डॉ. संजीब बैनर्जी ने हमारे समय की सबसे गंभीर पर्यावरणीय चुनौतियों में से
एक प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने की दिशा में एक क्रांतिकारी शोध कार्य किया है।
पॉलीएथिलीन टेरेफ्थेलेट (पीईटी), जो बोतलों, वस्त्रों और पैकेजिंग में व्यापक रूप से प्रयुक्त होता है, तेज़ी
से कचरा भराव क्षेत्र और महासागरों में जमा हो रहा है। इसके विघटन में सैकड़ों वर्ष लगते हैं। मौजूदा
यांत्रिक पुनर्चक्रण (मैकेनिकल रीसाइक्लिंग) से पीईटी की गुणवत्ता घट जाती है, जबकि पारंपरिक
रासायनिक पुनर्चक्रण (केमिकल रीसाइक्लिंग) ऊर्जा-गहन और प्रदूषणकारी है।
इस समस्या का समाधान खोजने के लिए आईआईटी भिलाई की टीम ने एक नवीन एवं पर्यावरण-अनुकूल
रासायनिक पुनर्चक्रण तकनीक विकसित की है, जिसमें पीईटी को पुनः प्रयोग योग्य नैनो उत्प्रेरक की
सहायता से उसके मूल घटकों में परिवर्तित किया जाता है।
इस तकनीक में चुंबकीय रूप से पुनः प्राप्त होने योग्य लौह आधारित नैनो उत्प्रेरक का उपयोग किया गया
है। यह उत्प्रेरक पीईटी को उसके मूल मोनोमर बीएचईटी (बिस(2-हाइड्रॉक्सीएथिल) टेरेफ्थेलेट) में उच्च
दक्षता और चयनात्मकता के साथ परिवर्तित करता है। इस प्रक्रिया की विशेषता यह है कि उत्प्रेरक को कई
बार बिना दक्षता खोए पुनः प्रयोग किया जा सकता है और हानिकारक उप-उत्पाद न्यूनतम रहते हैं। इस
प्रकार यह तकनीक पूर्ण चक्र (क्लोज़्ड-लूप) प्लास्टिक पुनर्चक्रण का मार्ग प्रशस्त करती है और हमारी
अर्थव्यवस्था को प्रबल बनाने में सहायता करती है।
डीएसआईआर-सीआरटीडीएच, भारत सरकार और आईआईटी भिलाई के सहयोग से सम्पन्न यह शोध
दर्शाता है कि नैनोप्रौद्योगिकी और हरित रसायन (ग्रीन केमिस्ट्री) के मेल से प्लास्टिक कचरे की समस्या का
व्यावहारिक और टिकाऊ समाधान संभव है। यह अध्ययन विश्वप्रसिद्ध जर्नल एसीएस एनवायरनमेंटल
साइंस एंड टेक्नोलॉजी में प्रकाशित हुआ है और एक स्वच्छ, स्मार्ट और सतत भविष्य की दिशा में एक
महत्वपूर्ण कदम है।