भूपेन दा...भारत के रत्न
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज भूपेन हजारिका जी की जयंती पर उनके जीवन और संगीत पर गहन विचार व्यक्त करते हुए कहा कि उनकी रचनाएं लाखों लोगों को प्रेरित करती रही हैं।
क्या भारत में रहने के लिए भारतीय होना काफी नहीं है ? हम भारतीय एक दूसरे से सच्चा भारतीय होने का सबूत मांगते रहते हैं , तभी तो अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शो मेन राज कपूर को भी कहना पड़ता है "सर पर लाल टोपी रुसी फिर भी दिल है हिंदुस्तानी"
- वैशाली सोनवलकर
अब टाइम मशीन तो है नहीं कि उसमें बैठे और री विजिट करके आ गए बीते समय को, तो सोचा कलम के सहारे ही री कॉल किया जाए बाबा से जुड़ी यादों का मेरा बचपन ; जो की 80 के दशक का है , आई बाबा और हम तीन बच्चे ।
ऊर्जा नगरी के एक क्वार्टर में हम पले बढ़े चूंकि कोरबा अंदरूने मुल्क था तो वहां स्कूल के नाम पर केवल एक कान्वेंट स्कूल ही था सो वहां एडमिशन दिलाया गया । शुरुआती कुछ एक साल तो अच्छे गए जब बेसिक अक्षर ज्ञान और जोड़ - घटाव था पर धीरे-धीरे गणित नामक विलन ताकतवर होता चला गया , स्कूल से लेकर घर तक जीना हराम कर रखा था इसने ।
बाबा का तर्क था गणित अच्छा मतलब बच्चा होशियार और मैं ठहरी फिसड्डी , बाबा जब भी गणित पढ़ाने के लिए बैठते उन्हें कूट (पीट) नीति का प्रयोग करना ही पड़ता था। मेरी छोटी पेंसिल, एकदम करिया इरेज़र और फटे मैले पन्नों वाली रफ कॉपी जैसे जानबूझकर अपनाए जाने वाले हथकंडे भी काम नहीं आते थे ; जम के पिटाई होती थी ।
चौथी या पांचवी तक आते-आते एक और स्कूल खुल गया सरस्वती शिशु मंदिर तो बाबा ने वहां दाखिला करवा दिया । स्कूल पावर प्लांट के आहते में था , जिसके गेट पर रशियन भाषा में "एता तेप्लोवया बिलास्ट्रोतासिया बिला स्पोस्टोएना स पैमशयू USSR "लिखा था , जिसका मतलब यह ताप विद्युत घर USSR की मदद से बनाया गया है। यह वाक्य बाबा ने मुझे सिखाया था जब कभी साइकिल से स्कूल छोड़ने जाते तब हम दोनों उसे जरूर पढ़ते थे। स्कूल बदल गया पर गणित से दुश्मनी तब भी बरकरार रही ना जीसस काम आए ना सरस्वती माता ; अंक गणित और चक्रवृद्धि ब्याज से ही परखच्चे उड़ रहे थे , ऊपर से रेखा गणित का तूफान आ गया ।
मुझे अच्छी तरह याद है वह दिन जब सातवीं में गणित का पेपर था बाबा ने बोल दिया था आज मैं तुम्हारा पेपर होने के बाद चेक करूंगा, पेपर देकर सीधे घर आना । सवाल तो सर के ऊपर से गए पेपर देकर स्कूल से निकली बाहर निकलते ही हाथ पैर ठंडे पड़ने लगे आज तो बहुत धुलाई होगी यह अटल है , मैंने स्कूल से निकलते ही पेपर वहां चर रही गौ माता को खिला दिया और चुपचाप घर आ गई , देखा तो बाबा बरामदे में ही मेरा इंतजार करते बैठे थे मुझे देखते ही बोले पेपर कहां है? मैं ढूंढने का नाटक करने लगी , दोपहर का वक्त था चिलचीलाती धूप और ऊपर से बाबा का गुस्सा ग्लोबल वार्मिंग अपने चरम पर थी । उस दिन बाबा बोले कोई खाना-वाना नहीं मिलेगा ; जाओ अपनी सहेली के यहां से सवाल उतार कर लाओ , मैं सारी दोपहर भागती - दौड़ती रही । एक सहेली से दूसरे सहेली के घर शाम तक सवाल कॉपी कर पाई ,फिर तो जो समय टालने का प्रयास किया था उसका भुगतान सूद समेत चुकाना पड़ा ।कसम से गणित नहीं होता तो जिंदगी मस्त मौला गुजर रही थी आम ,अमरूद ,बेर के पेड़ थे दिन भर खेलते - कूदते गुजर जाता था ।
पढ़ाई लिखाई की सख़्ती के अलावा बाबा हम बच्चों के साथ पतंग उड़ाना,पत्ते , बैडमिंटन खेलने और बागवानी जैसे उपक्रम भी करते थे । बाबा की सबसे पसंदीदा आदत में शुमार था , भाषा के नए-नए शब्दों का प्रयोग । बाबा तो छत्तीसगढ़ी भी अच्छी तरह बोल लेते थे । किसी भी भाषा का दर्जा ऊंचा या नीचा नहीं रखा उन्होंने कभी । रूसी तकनीक के प्रभाव के कारण कोरबा में रशियन किताबें जो कि हिंदी में अनुवादित होती थी बड़ी आसानी से मिलती थीं।
बाबा ने अपने कुछ दोस्तों के सरनेम को रशियन भाषा के सरनेम में बदल दिया था । हम सभी इतने आदि हो गए थे कि कभी-कभी वह अंकल मिलने पर उनका असली सरनेम याद ही नहीं आता था ।
बाबा के इन भाषाई प्रयोग की वजह से मुझे कभी भी भारत के किसी प्रांत में एडजस्ट होने में समय नहीं लगा , कोई भी लोकल डाइलेक्ट अटपटा नहीं लगा । अनजाने में ही बाबा ने मुझे भाषाओं के प्रति सहज बना दिया। मेरे पति" बुंदेलखंड की सौगात "है , अब मैं बुंदेलखंडी भी अच्छी तरह बोल समझ लेती हूं। बचपन से अलग-अलग शब्दों को सुनने की आदत होने की वजह से आजकल होने वाले भाषा विवाद मुझे समझ में ही नहीं आते सभी भाषाएं कितनी प्यारी और अच्छी होती है ।
हमारे घर में अलग-अलग शब्द प्रयोग बहुत ही मजेदार होते थे पर कभी-कभी आई किसी पेचीदा काम में लगी हो और बाबा साधारण से शब्द का कोई क्लिष्ठ शब्द प्रयोग करते तो आई तमक जाती थी। थोड़ी नोंकझोंक के बाद फिर हम सभी हंसने लगते। अन्न ,वस्त्र और प्यार दुलार भरी छांव के अलावा हमारे माता-पिता अनजाने में हमारी झोली में बहुत कुछ डालते रहते हैं ,आज जब बाबा विस्मृति के सागर में गोते लगा रहे हैं तो हम तीनों उन्हें अपने-अपने तरीके से याद कर रहे हैं । एक ही घर में रहते हुए सभी के अनुभव अलग-अलग हैं , जैसे प्रिज्म से एक सिरे पर पड़ती सफेद प्रकाश की किरण दूसरे छोर पर सतरंगी हो जाती है। हम सभी यादों की झोली खंगाल रहे हैं, बाबा अभी भी तेप्लोवेया(विद्युत घर)की छांव में ही रहते हैं और मैं अलग-अलग शहरों में वहां की संस्कृति खान-पान बोली भाषा के अलग-अलग शब्दों का गुलदस्ता बना रही हूं , कोई जब पूछता है कि आप लोग कहां के हो ? तो अपनी पहचान बताने के लिए मेरे पास केवल एक ही ताश का पत्ता नहीं बल्कि कई पत्ते होते हैं । अपना समझने वाले ज्यादा सवाल नहीं करते पर सबूत मांगने वाले हमें छत्तीसगढ़ ,मध्य प्रदेश में बाहरी और महाराष्ट्र में मराठी बोलने के बावजूद अमराठी समझते हैं ।
सोचती हूं तो लगता है कि क्या भारत में रहने के लिए भारतीय होना काफी नहीं है ? हम भारतीय एक दूसरे से सच्चा भारतीय होने का सबूत मांगते रहते हैं , तभी तो अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शो मेन राज कपूर को भी कहना पड़ता है "सर पर लाल टोपी रुसी फिर भी दिल है हिंदुस्तानी"
चाहे तो हम अपना जीवन संकीर्णता में गुजार सकते हैं पर मैं बाबा का दिया दुनिया को देखने का विस्तृत नजरिया मरते दम तक अपने साथ रखूंगी।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज भूपेन हजारिका जी की जयंती पर उनके जीवन और संगीत पर गहन विचार व्यक्त करते हुए कहा कि उनकी रचनाएं लाखों लोगों को प्रेरित करती रही हैं।
पिछले एक दशक में, महिला सशक्तिकरण के प्रति मोदी सरकार की दृढ़ प्रतिबद्धता ने सामाजिक कल्याण को नेतृत्व, सम्मान और अवसर के एक गतिशील आधार में बदल दिया है, जिससे लैंगिक समानता की दिशा में एक गंभीर बदलाव आया है। स्वास्थ्य, शिक्षा, आर्थिक स्वतंत्रता और राजनीतिक प्रतिनिधित्व से जुड़ी लक्षित योजनाओं के माध्यम से, विविध पृष्ठभूमियों की लाखों महिलाएं न केवल आवश्यक संसाधनों तक पहुँच प्राप्त कर रही हैं .
छायाकार नितिन पोपट को जबलपुर की एक पहचान व ब्रांड भी कहा जा सकता है। जब भी जबलपुर में राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, कला क्षेत्र की कोई विभूति जबलपुर आती थी तब उसकी मुलाकात नितिन पोपट से अवश्य होती थी। यदि विभूति का पहली बार जबलपुर आगमन होता था, तो दूसरी बार जबलपुर आने पर उनकी निगाह नितिन पोपट को ज़रूर दूंढ़ती थी।