भूपेन दा...भारत के रत्न
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज भूपेन हजारिका जी की जयंती पर उनके जीवन और संगीत पर गहन विचार व्यक्त करते हुए कहा कि उनकी रचनाएं लाखों लोगों को प्रेरित करती रही हैं।
कहा जाता है फिल्में समाज का आइना होती हैं।समाज में जो चल/दौड़ रहा होता है वह फिल्मों में भी दिखने लगता है। इसका मतलब रेडियो चल रहा है…रेडियो के और विस्तार के बारे में बता रहे हैं संजीव शर्मा
-संजीव शर्मा, आकाशवाणी समाचार, भोपाल
हाल ही के वर्षों में रेडियो पर केंद्रित दो गाने खूब बजे। इनमें से एक शायद 2009 में आया था जिसमें मन का रेडियो बजाने की बात थी:
‘मन का रेडियो बजने दे ज़रा
गम को भूल कर जी ले तू ज़रा
स्टेशन कोई नया ट्यून कर ले ज़रा
फुल्टू ऐटिटूड दे दे तू ज़रा..’
इसके बाद 2017 में सलमान खान की फिल्म ट्यूबलाइट में सजन रेडियो ने धूम मचाई:
‘सजन रेडियो बजईओ बजईओ
बजईके सभी को नचईओ जरा..’
कहा जाता है फिल्में समाज का आइना होती हैं।समाज में जो चल/दौड़ रहा होता है वह फिल्मों में भी दिखने लगता है। इसका मतलब रेडियो चल रहा है…दौड़ रहा है, तभी तो फिल्मों में रेडियो पर गाने लिखे जा रहे हैं। वाकई, रेडियो फिर अपनी पूरी रफ्तार से चल पड़ा है। बीच में कुछ वक्त ऐसा था जब बुद्धू बक्से की आंधी में रेडियो को रफ्तार धीमी पड़ गई थी लेकिन लोगों को जल्दी ही समझ आ गया कि टीवी/छोटे परदे का जन्म उनको बुद्धू बनाने के लिए हुआ है। इसलिए, गलती समझ आते ही लोग वापस रेडियो की राह पर लौटने लगे।इस दौरान, रेडियो ने भी रंग रूप बदले और अपने आपको मोबाइल में समेट लिया। रेडियो कभी ट्रांजिस्टर बना तो कभी कारवां में बदला…कभी पॉडकास्ट बनकर छाया तो कभी कम्युनिटी रेडियो में,कभी मोबाइल में ऐप बनकर समाया, कभी कार में गूंजा तो कभी सुबह की सैर करने वालों की जेब में। रंग,रूप,आवाज और अंदाज बदलते हुए रेडियो एक बार फिर हमारे आसपास सुरीली तान छेड़ने लगा है ।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब देशवासियों से अपने मन की बात कहने सुनने का विचार किया तो उन्होंने रेडियो को ही चुना और हर माह के अंतिम रविवार को प्रसारित होने वाला यह कार्यक्रम सौ एपिसोड को भी पार कर गया है और इसकी लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है। रेडियो और प्रधानमंत्री के गठजोड़ ने रेडियो का तो पुनर्जन्म किया ही,खादी से लेकर स्थानीय उत्पादों तक की काया पलट कर रख दी…ये रेडियो की लोकप्रियता का ही कमाल थे। प्रधानमंत्री की राह पर चलते हुए कुछ और प्रयोग हुए जैसे मध्य प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दिल से कार्यक्रम के जरिए रेडियो से राज्य के लोगों से संवाद किया। वहीं, अभी केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी नई सोच नई कहानी कार्यक्रम के माध्यम से इस सिलसिले को आगे बढ़ा रही हैं।
रेडियो की साख और हैसियत को इस बात से भी समझा जा सकता है कि कई बड़े मीडिया समूह एफएम और पॉडकास्ट के जरिए रेडियो की दुनिया में कूद रहे हैं। रेडियो का पर्याय आकाशवाणी तो है ही हरफनमौला जो हर दौर में पूरी मुस्तैदी से डटा हुआ है और गीत,संगीत,समाचार,विचार जैसे विविध कार्यक्रमों के साथ सूचना,शिक्षा और मनोरंजन प्रदान करते हुए बहुजन हिताय बहुजन सुखाय की कसौटी पर खरा उतर रहा है। विश्व रेडियो दिवस एक बार फिर रेडियो को एक सशक्त माध्यम के रूप में अपनाने की याद दिलाता है। इस बार विश्व रेडियो दिवस की थीम ‘रेडियो: सूचना देने, मनोरंजन करने और शिक्षित करने वाली एक सदी’ है। आपदा से लेकर अवसर उपलब्ध कराने में रेडियो लगातार यह भूमिका निभाते आ रहा है। कोरोना संक्रमण के भयंकर दौर में हमने भी आपदा को अवसर में बदलकर रेडियो समाचारों को घर से प्रसारित कर और अच्छी खबर जैसी शुरुआत की थीं जिनको खूब सराहना मिली। ऐसे ही छोटे छोटे प्रयासों से रेडियो हमसे,समाज से संवाद करता है इसलिए फिलहाल तो मन का रेडियो बजाने का दौर है इसलिए वेलेंटाइन सप्ताह में बह रही प्रेम की हवा में आप भी सनम के साथ रेडियो पर प्यार लुटाइए और हमारे साथ गुनगुनाइए..‘सजन रेडियो बजईओ बजईओ
बजईके सभी को नचईओ जरा..।’
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज भूपेन हजारिका जी की जयंती पर उनके जीवन और संगीत पर गहन विचार व्यक्त करते हुए कहा कि उनकी रचनाएं लाखों लोगों को प्रेरित करती रही हैं।
पिछले एक दशक में, महिला सशक्तिकरण के प्रति मोदी सरकार की दृढ़ प्रतिबद्धता ने सामाजिक कल्याण को नेतृत्व, सम्मान और अवसर के एक गतिशील आधार में बदल दिया है, जिससे लैंगिक समानता की दिशा में एक गंभीर बदलाव आया है। स्वास्थ्य, शिक्षा, आर्थिक स्वतंत्रता और राजनीतिक प्रतिनिधित्व से जुड़ी लक्षित योजनाओं के माध्यम से, विविध पृष्ठभूमियों की लाखों महिलाएं न केवल आवश्यक संसाधनों तक पहुँच प्राप्त कर रही हैं .
छायाकार नितिन पोपट को जबलपुर की एक पहचान व ब्रांड भी कहा जा सकता है। जब भी जबलपुर में राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, कला क्षेत्र की कोई विभूति जबलपुर आती थी तब उसकी मुलाकात नितिन पोपट से अवश्य होती थी। यदि विभूति का पहली बार जबलपुर आगमन होता था, तो दूसरी बार जबलपुर आने पर उनकी निगाह नितिन पोपट को ज़रूर दूंढ़ती थी।