--संदीप सोनवलकर, वरिष्ठ पत्रकार
महाराष्ट्र की राजनीति में अब ये कहा जाने लगा है कि कब कौन किसके साथ चला जाये ये कहना मुश्किल है लेकिन राज्य की राजनीति में पिछले पचास साल से राज कर रहे ठाकरे और पवार घराने में फिर से मिलन की बयार बह रही है ..कहा जा रहा है कि अगले कुछ दिनों के ही भीतर दोनों परिवारों के मिलन की औपचारिक घोषणा हो जायेगा क्योंकि दोनों तरफ ही मन बन गया है बस हाथ मिलाना बाकी हैं..आइये देखते हैं कितने जरुरी है ये दोनों परिवार औऱ इनके मिलन का कितना असर होगा महाराष्ट्र की राजनीति पर
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे ने कहा है कि महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे-पवार ब्रांड खत्म नहीं हो सकते। उन्होंने यह बात एक मराठी न्यूज पोर्टल के कार्यक्रम में वार्तालाप के दौरान कही।
कुछ समय से राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के एक साथ आने की चर्चा चल रही है। शिवसेना (यूबीटी) के नेता संजय राउत ने भी कहा है कि महाराष्ट्र के हित के लिए दोनों भाई साथ आ सकते हैं। इसी संदर्भ में पूछे गए एक प्रश्न पर राज ठाकरे ने कहा कि महाराष्ट्र की राजनीति से पवार और ठाकरे ब्रांड को खत्म करने की कोशिशें की जा रही हैं। लेकिन इन्हें खत्म नहीं किया जा सकता।राज ठाकरे ने आगे कहा कि जहां तक ठाकरे ब्रांड का सवाल है, इसकी पहली कड़ी मेरे बाबा प्रबोधनकार ठाकरे का महाराष्ट्र पर गहरा प्रभाव था। उनके बालासाहेब ठाकरे और मेरे पिता श्रीकांत ठाकरे का प्रभाव रहा। अब उद्धव और मेरा अपना-अपना प्रभाव है। इसे खत्म नहीं किया जा सकता।
ठाकरे परिवार ..
वैसे तो ठाकरे परिवार मध्यप्रदेश से होते हुए महाराष्ट्र पहुंचा और उनके अग्रज प्रबोधनकार ठाकरे ने अपने भाषणों के जरिये समाज मे फैले अंधविश्वास और कुरीतियों पर हमला किया .प्रबोधनकार केशव सीताराम ठाकरे (१७ सितम्बर १८८५ - २० नवम्बर १९७३)] एक सत्यशोधक आंदोलन के चोटी के समाज सुधारक और प्रभावी लेखक थे। शिव सेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे उनके पुत्र थे .
विचारवंत, नेता, लेखक, पत्रकार, संपादक, प्रकाशक, वक्ता, धर्म सुधारक, समाज सुधारक, इतिहास संशोधक, नाटककार, सिनेमा पटकथा संवाद लेखक, अभिनेता, संगीतज्ञ, आंदोलनकारी, शिक्षक, भाषाविद, लघु उद्योजक, फोटोग्राफर, टाइपिस्ट, चित्रकार जैसे कई विशेषणों से उनको नवाजा गया .तभी से ठाकरे परिवार का महाराष्ट्र की राजनीति पर असर दिखने लगा था.. उनके एक बेटे बाल ठाकरे ने 70 के दशक में शिवसेना बनाकर एक नई राजनीती की शुरुआत की जिसमें मराठी हितों को सबसे ऊपर रखकर बड़ी संख्या में युवाओं को जोड़ा गया . शुरुआती दौर पर उन्होनें दक्षिण भारतीयों को निशाना बनाकर लोकप्रियता हासिल की तो दूसरी तरफ तब मुंबई की कपड़ा मिलों की राजनीति में लेफ्ट यूनियनों का मुकाबला किया .
सबसे पहले शिवसेना ने मुंबई महानगरपालिका के लिए कभी कांग्रेस और कभी लेफ्ट के साथ भी हाथ मिलाया .महाराष्ट्र एकीकरण आंदोलन में बालासाहेब ठाकरे ने बड़ी भूमिका निभाई लेकिन शिवसेना की असली राजनीति की शुरुआत 1990 के बाद ही हुयी जब भाजपा ने राममंदिर आंदोलन शुरु किया तो शिवसेना हिंदुत्व के रथ पर सवार हो गयी .इसका उसको बड़ा फायदा मिला और वो सत्ता तक पहुंच गयी.
बीजेपी के साथ मिलकर शिवसेना लगातार सत्ता में आगे बढ़ती रही और एक समय बालासाहेब ठाकरे के सामने दिल्ली तक नतमस्तक होती रही लेकिन बालासाहेब की उम्र होने के कारण जब विरासत का सवाल उठने लगा तो उन्होंने अपने पुत्र उदधव ठाकरे को ही चुना ..इसी के साथ ठाकरे परिवार में खाई खुलकर उभरकर सामने आ गयी ..करीब 19 साल पहले उनके चचेरे भाई राज ठाकरे जिनका असली नाम स्वरराज ठाकरे हैं ने अलग से अपनी पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे ) बना ली. इधर शिवसेना लगातार बीजेपी के साथ रहकर केंद्र और राज्य दोनों का सुख भोगती रही . बालासाहेब के निधन के बाद शिवसेना में लगातार विवाद उठते रहे और पार्टी का ग्राफ गिरता रहा .. 2019 में सीएम पद पर खींचतान के कारण उदधव ठाकरे कांग्रेस और शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस के साथ चले गये और सीएम बन गये. आखिर में करीब तीन साल पहले जब सबसे खासमखास एकनाथ शिंदे ने ही पार्टी के 46 विधायकों को तोड़कर शिवसेना ब्रांड पर ही अपना दावा ठोक दिया तो ये उदधव ठाकरे के लिए सबसे बड़ा झटका था .2024 के विधानसभा चुनाव में उदधव ठाकरे की हालत सबसे पतली हो गयी सत्ता तो गयी ही उनके सामने पार्टी बचाने का संकट भी पैदा हो गया . उनके 20 ही विधायक चुनकर आये .
उधर राज ठाकरे को शुरुआती दौर में कुछ सफलता मिली और वो कुछ विधायक और नासिक महानगरपालिका पर कब्जा करने में भी कामयाब रहे लेकिन लगातार स्टैंड बदलते रहने के कारण उनकी विश्वसनीयता भी घटती रही और 2024 में उनका एक भी विधायक चुनकर नहीं आया ..
अब मुंबई महानगरपालिका के चुनाव सामने है दोनों भाई जानते है कि अगर मुंबई हाथ से निकल गयी तो बीजेपी पूरी तरह छा जायेगी और ठाकरे परिवार की हैसियत एकदम कम हो जायेगी .इसलिए मजबूरी और जरुरत दोनों को समझते हुए दोनों की मिलन की भाषा बोल रहे हैं. दोनों के साथ आने का मुंबई के करीब 40 प्रतिशत मराठी वोटरों पर जमकर असर होगा लेकिन अभी बहुत से पेंच बाकी है खासतौर पर दोनों तरफ के छुटभैये नेता अपनी कुर्सी बचाना चाहते हैं. उनको एडजस्ट करना होगा .लेकिन फिर भी ये तो कहा ही जा सकता है कि मिलन दूर नहीं बस पहल का इँतजार है ..
पवार परिवार ...
महाराष्ट्र की राजनीति में जब बालासाहेब ठाकरे उभर रहे थे तभी बारामती के एक किसान परिवार से आने वाले शरद पवार भी कांग्रेस की सीढिया तेजी से पार कर रहे थे ..सन 1967 से लगातार विधायक चुनकर आने वाले शऱद पवार को 1978 में अपने ही गुरु वसंत दादा पाटिल की सरकार गिराकर सीएम बनने का मौका मिला तब से पवार ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और करीब चालीस साल से 2024 तक राज्य की राजनीति का हर बड़ा फैसला उनसे ही पूछकर लिया गया. पवार को पीएम बनने की इच्छा थी लेकिन पूरी नहीं हुयी सो आखिरकार 1999 में कांग्रेस छोड़कर अपनी अलग से पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस बना ली लेकिन 2004 में सत्ता के लिए वो फिर से कांग्रेस के साथ गठबंधन किया और केंद्र में मंत्री बने रहे .. इधर जब 2019 में उदधव ठाकरे को सीएम बनाने का फैसला भी शऱद पवार ने लिया लेकिन इस सरकार के बनते समय ही उनके अपने भतीजे अजित पवार से मतभेद खुलकर सामने आ गये..अजित पवार ने 2019 में ही देवेंद्र फणनवीस के साथ सुबह सवेरे शपथ लेकर सरकार बनाने की कोशिश की लेकिन चाचा शऱद पवार ने पानी फेर दिया .. बाद में चाचा के कहने पर ही अजित पवार को मजबूरन उदधव ठाकरे की सरकार में भी डिप्टी सीएम बनना पड़ा लेकिन भाजपा को उनकी नाराजगी की बात पता चल गयी तो एकनाथ शिंदे के बाद भाजपा ने अजित पवार को शह दी और राष्ट्रवादी कांग्रेस में भी फूट करवाकर उनका चुनाव चिन्ह तक छीन लिया.
इस चुनौती के बाद भी शऱद पवार ने लोकसभा का चुनाव बेहतर लड़ा और यहां तक कि बारामती में अपनी बेटी सुप्रिया सुले के हाथो अजित पवार की पत्नी को चुनाव हरवा दिया लेकिन 2024 के विधानसभा चुनाव में उनकी राष्ट्रवादी कांग्रेस भी हाशिये पर चली गयी और अजित पवार फिर से डिप्टी सीएम और वित्तमंत्री बन गये. अब पिछले छह महीने से शऱद पवार अस्वस्थ है करीब 84 साल के हो चुके शऱद पवार अपनी बेटी का पुनर्वास चाहते हैं. इसलिए उन्होनें खुद ही भतीजे के साथ तालमेल करने की पेशकश की है . अजित पवार भी इसके लिए तैयार है क्योंकि जानते है कि चाचा शऱद पवार के साथ एक बड़ा वर्ग जुड़ा हुआ है.. बात अब बस सुप्रिया सुले के किरदार को लेकर हो रही है. अटकलें कही जा रही है कि उनको केंद्र में मंत्री बनवा दिया जायेगा और अजित पवार राज्य संभालेंगे ..
पवार परिवार के मिलन का भी राज्य पर बड़ा असर होगा एक तो पिछले करीब 25 साल से कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाली एनसीपी के अलग होने से कांग्रेस को झटका लगेगा और उसे ग्रामीण इलाकों में बहुत मेहनत करनी होगा लेकिन लंबे समय में कांग्रेस अपनी जमीन फिर से बना सकती है .दूसरी तरफ भाजपा को केंद्र में बहुत ही जरुरी 8 और सांसदों का समर्थन मिल जायेगा जिससे उस पर दवाब कम होगा . देरसबेर अगर भाजपा उदधव ठाकरे की शिवसेना को भी अपने साथ मिला ले तो तब राज्य में कांग्रेस के अलावा कोई विपक्ष नहीं रहेगा ..कांग्रेस की जो हालत है उसमें वो अधमरी है अभी ऐसे में ठाकरे और पवार परिवार में मिलन की घटना के राज्य की राजनीति पर दूरगामी परिणाम होंगे ..